नारी को देवी न माने , इन्सान तो माने
" स्त्री एक आग है एक ज्वाला है , गंगा है , नर्मदा है ,.......हर स्त्री के भीतर बहुत सारी ऊर्जा होती है , पर कुछ
असीमित सक्तिया भी इश्वर ने दी है , जिनके बारे कई बार तो अनभिज्ञ रहती है जब स्त्री का उल्लेख अबला , असह्य नारी के रूप मै होता है ! मुझे बड़ी कोफ्त रहती है ! नारी अबला नहीं नहीं है !, ना कभी थी ! वो शुरु से ही सबला थी ..... हमारे पुराण ,हमारा इतिहास ,हमारी धरोहर ना जाने कितने ऐसे उदहारण हमे देते चले आए है ! जहा स्त्री की ताकत, शक्ति का परमाण मिला है ! महिलाओ को जरुरत है , अपनी अन्दुरुनी शक्ति (पॉवर ), स्टेमिना, को जानने - परखने की ....! आज के दॊर मै स्त्री को सिर्फ आवशकता है , आत्मविश्वास की ! यदि उसने खुद के आत्मविश्वास को ललकारा तो कोई भी उसे रोक नहीं पाएगा .....!"
अपने ही देश मे कई सारे ऐसे पिछडे राज्य व गावं है, जहा पर लोगो की मानसिकता है की क्यों लडकिया श्याम के समय घर के बाहर निकले , क्यों महिलाये फैशनेबल परिधानों मे रास्ते से गुजरे .....इस तरह के दकियानूसी ख्यालात कब बद्लेगे पता नहीं, लेकिन ये सारी अवधारणाये है ! जिनसे समाज खोखला बनता है ! जबकि हमारे भारतीय समाज मे ही नहीं , पूरी दुनिया मे ही आधी जनसंख्या महिलाओ की है !~…।
पिछले हजारो बर्षो से चली आ रही परंपरा मे आपने कभी सुना है की किसी मर्द को उसके पहनावे को लेकर किसी का भी पहनावा बहस का मुददा तो नहीं बन सकता ना .......? यहाँ जानते-समझते हुए भी क्यों दुनिया भर की पाबन्दिया महिलाओ पर लगायी जाती है ! लडकिया उतनी ही बुद्धिमान है जितने की लड़के ....!नारी को देवी न माने , इन्सान तो माने.....